शनिवार, 15 मई 2010

क्या कोई मेरे शहर का है?


क्या कोई मेरे शहर का है?
सुना है,
वहां गलियां सड़क में तबदील हो गयीं हैं,
दरवाजे पर लगा नीम सूख गया है,
नन्हां बरगद जवान हो गया है,
पहले घर का पुरवारी कोना ढ़ह गया,
फिर घर का कोना-कोना बंट गया,
और तब
मैं सोचता रहा,
थोड़ा और कमा लूं,
बच्चों को यहीं पढ़ा लूं,
अब बच्चे जवान हो गये हैं,
अब ये यहीं बस गये हैं,
पहले बुजुर्गों ने साथ छोड़ा,
अब दोस्तों का स्मरण कमजोर हो गया है,
मेरा जवान चेहरा ही उन्हें ख्याल आता है,
अब अकेला, कैसे जाऊं, अपने शहर,
बस ढूंढता हूं,
क्या कोई मेरे शहर का है?