शुक्रवार, 15 मई 2009

पाटलिपुत्र से पटना

बिहार की राजधानी पटना का नाम आते ही ज़ेहन में कई नाम उभरते हैं, पाटलिग्राम, पाटलिपुत्र, पुष्पपुर, कुसुमपुर, अज़ीमाबाद और पटना। पटना का इतिहास काफ़ी पुराना है। यह शहर गंगा, सोन और पुनपुन तीन नदियों के संगम पर होने की वहज से हमेशा आबाद तो रहा ही, वक्त के थपेड़ों से भी बसता-उजड़ता रहा है। यह शहर अपने गर्भ में इतिहास के कई काल को समेटे हुए है। नतीजतन धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्ट्रि से पटना का खासा महत्व रहा है। युनानी इतिहासकार और चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में राजदूत मेगास्थनीज ने (350 ईपू-290 ईपू) अपनी पुस्तक इंडिका में इस शहर का भी उल्लेख किया है। और पलिबोथ्रा यानी पाटलिपुत्र गंगा और इसकी पुष्टि भी की है कि अरेन्नोवास (सोनभद्र-हिरण्यवाह) के संगम पर बसा है। उसकी किताब के आकलनों के मुताबिक प्राचीन पटना 9 मील (14.5 कि.मी.) लम्बा तथा 1.75 मील (2.8 कि.मी.) चौड़ा था । आज पटना का स्वरूप जरूर बदल गया है लेकिन आज भी शहर तीन ओर से गंगा, सोन और पुनपुन नदियों से घिरा है । नगर से ठीक उत्तर गंगा के उस पार गंडक नदी भी गंगा में आ मिलती है। शहर का कुल क्षेत्रफल 3,202 वर्ग किमी है। 2001 की जनगणना के अनुसार पटना की जनसंख्या 12,85,470 है। 1991 में यहां की जनसंख्या 9,17,243 थी । जनसंख्या का घनत्व 1132 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमिटर है। स्त्री पुरूष अनुपात है - 839 स्त्री प्रति 1,000 पुरूष । साक्षरता की दर 62.9%, स्त्री साक्षरता 50.8% है । पटना यानी पाटलिपुत्र का अपना इतिहास रहा है। पटना यानी पाटलिपुत्र का अपना इतिहास रहा है। यह कभी पाटलिग्राम था जहां गुलाब (पाटलि का फुल्) की खेती होती थी। गुलाब के फुलों से तरह-तरह के इत्र, दवा बनाकर व्यापार किया जाता। गुलाब फुल कि खेती की वजह से इसका नाम पाटलिग्राम पड़ा। पटना को लेकर एक किंवदंति भी है । कहा जाता है कि राजा पत्रक ने अपनी रानी पाटिल के लिए जादू से इस शहर को बसाया था। बाद में रानी के नाम पर इस शहर का नाम पाटलिग्राम पड़ा। जो बाद में पाटलिपुत्र हो गया। मगध की राजधानी होने की वजह से इसकी गणना प्राचीनतम इतिहासों में भी होती रही है। पुरातात्विक अनुसंधानों के मुताबिक पटना का इतिहास 490 ईसा पूर्व से का बताया जाता है जब शिशुनाग वंश के शासक अजातशत्रु ने अपनी राजधानी राजगृह से बदलकर यहां बनाया था। अजातशत्रु का वैशाली के लिच्छवियों से संघर्ष होने की वजह से उसके लिए पाटलिपुत्र राजगृह की अपेक्षा सामरिक दृष्टि से अधिक उपयुक्त था। उसने गंगा के किनारे पाटलिपुत्र में अपना महल बनाया। उसी समय से यह शहर ऐतिहास बन गया । बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध यहां आये इसके भी प्रमाण मिलते हैं। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि नगर का भविष्य उज्जवल होगा, पर कभी बाढ़, आग या आपसी संघर्ष के कारण यह बर्बाद हो जाएगा । मौर्य काल में भी पाटलिपुत्र सत्ता का केन्द्र रहा। चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से लेकर अफगानिस्तान तक फैल फैला हुआ था। मौर्य वंश और सम्राट अशोक के समय के कई अवशेष यहां मौजूद हैं। चीनी यात्री फाहियान ने (सन् 399-414) अपने यात्रा-वृतांत में यहां के शैल संरचनाओं का उल्लेख किया है। इस नगर पर कई राजवंशों का शासन रहा है। । गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद पटना का भविष्य काफी अनिश्चित रहा । 12 वीं सदी में बख्तियार खिजली ने बिहार पर अपना कब्जा जमाया और शासन किया । मुगलकाल में दिल्ली के शासकों भी ने इसे अपने अधिन किया । बादशाह शेरसाह सूरी ने नगर को पुनर्जीवित करने की कोशिश की। उसने गंगा के किनारे अफ़ग़ान शैली की एक मस्जिद बनवाई जो आज भी मौजूद है । मुगल बादशाह अकबर 1574 में अफ़गान सरगना दाउद ख़ान को कुचलने पटना आया। इसके परमाण राज्य सचिव एवं आइने अकबरी के लेखक अबुल फ़जल के आइने अकबरी में मिलता है। उन्होंने इस जगह को कागज, पत्थर तथा शीशे का सम्पन्न औद्योगिक केन्द्र के रूप में उल्लेख किया है । सन् 1704 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने इस शहर का नामकरण अपने पोते मुहम्मद अजीम के नाम पर अज़ीमाबाद कर दिया। अज़ीम उस समय पटना का सूबेदार था। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद पटना पर बंगाल के नबाबों ने कब्जा जमा। 17 वीं शताब्दी में पटना अंतरराष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र बना। अंग्रेज़ों ने 1620 में यहां रेशम तथा कैलिको के व्यापार के लिये यहां फैक्ट्री खोली । बाद में पटना इस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चला गया और वाणिज्य का केन्द्र बना रहा । 1912 में बंगाल के विभाजन के बाद पटना उड़ीसा तथा बिहार की राजधानी बना। 1935 में उड़ीसा बिहार से अलग कर कर दिया गया पर पटना ही राज्य की राजधानी बना रहा।आजादी की लड़ाई में भी पटना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी के बाद पटना बिहार की राजधानी बना रहा। धार्मित नजरिए से भी पटना का खासा महत्व रहा है। यहां हिन्दुओं के प्रसिद्ध मंदिर, पटन देवी और सिक्खों का पवित्र स्थल गुरुद्वारा है, जहां सिक्खों के 10वें तथा अंतिम गुरु गुरु गोविन्द सिंह का जन्म हुआ था पटना और इसके आसपास के कई प्राचीन भग्नावशेष और खंडहर हैं जो इस शहर के ऐतिहासिक गौरव के मौन गवाह हैं। -----------