अपना शहर झांक आओ
कभी तुम अपना शहर झांक आओ,
जहां मेरी मोहब्बत की
हजारों चिठ्ठियां अब भी पड़ी हैं,
मेरा छोटा सा घर,
मेरे टूटे खिलौने,
मेरा सपनों का घरोंदा तो अब भी वहीं हैं,
दरख्तों पर हमने अपनी मोहब्बत की,
जो की थी किताबत
तारीख उसपर अब भी पड़ी,
बह गईं दरिया से हजारों लहरें
आंसुओं में लिपटीं मेरी आंखें
अब भी वहीं हैं.
कभी तुम अपना शहर झांक आओ,
जहां मेरी मोहब्बत की
हजारों चिठ्ठियां अब भी पड़ी हैं.-अनिता कर्ण 30.12.2017
कभी तुम अपना शहर झांक आओ,
जहां मेरी मोहब्बत की
हजारों चिठ्ठियां अब भी पड़ी हैं,
मेरा छोटा सा घर,
मेरे टूटे खिलौने,
मेरा सपनों का घरोंदा तो अब भी वहीं हैं,
दरख्तों पर हमने अपनी मोहब्बत की,
जो की थी किताबत
तारीख उसपर अब भी पड़ी,
बह गईं दरिया से हजारों लहरें
आंसुओं में लिपटीं मेरी आंखें
अब भी वहीं हैं.
कभी तुम अपना शहर झांक आओ,
जहां मेरी मोहब्बत की
हजारों चिठ्ठियां अब भी पड़ी हैं.-अनिता कर्ण 30.12.2017