मंगलवार, 25 जुलाई 2023

अधेड़ औरतें क्यों भागती हैं घर से

कई बार ऐसा होता है,

घर छोड़कर भाग जाती हैं.

अधेड़ औरतें,

कभी अकेली ही,

तो कभी सहारे के लिए किसी के साथ,

इसलिए नहीं कि

उन्हें  डराती हैं जिम्मेदारियां,

उन्हें डराते हैं लोग,

और ले जाते हैं इस हद तक, 

कि तिनका-तिनका जोड़ा घर ही,

उन्हें बेगाना लगने लगता है,

बेगानी वस्ती से ज्यादा,

वो घर जिसे बार-बार,

उसे अपना बताया जाता है.

 

जन्म लेने से मरने तक, 

जो कभी उसका होता ही नहीं,

सास बनने तक सास का शासन,

बहू के आने से पहले ही,

घर झिन जाने का डर,

उसे हर पल सताता है,

जिस घर को उसे बार-बार,

उसका अपना बताया जाता है.


इतना तो वह सह जाती है,

पर जब गांठ बांधकर,

हाथ थाम कर लाने वाला ही,

कब पराया हो जाता है,

गांठ खोलकर आलमारी में रख देता है,

और हाथ पकड़कर,

किसी और का हो लेता है,

तब अधेड़ औरत,

बेगानों को छोड़कर,

बेगानी वस्ती को ओर निकल जाती है.

शनिवार, 22 जुलाई 2023

चांद मामू क्या कीमत है उनकी?

चांद मामू,

उन्हें कोई नहीं पूछता,

न तीज में, न त्योहार में,

न शादी में, न सगाई में,

न उठावनी में, न संसकार में,

वो कभी चर्चाओं में भी नहीं होते,

न अपनों में, न परायों में,

उन्हें अपनी उम्र की गिनती नहीं आती,

और न ही उन्हें पता है रिश्तों का व्याकरण,

वो आज भी वहीं ठहर गए हैं,

अपनी मां की गोद से उतरकर,

अपनी मातृभाषा सीखने से पहले,

उनके लिए कोई उपहार नहीं लाता,

और न ही उनके लिए टॉफी ले जाता है,

उन्हें किसी का इंतजार भी नहीं है, 

उनमें न तो रोशनी है,

न शीतलता है,

न वो गाय हैं, न बकरी

न वो किसी आहार बन सकते हैं,

न ही उनकी खाल से किसी के जुते,

क्या कीमत है उनकी?

कनहोज में पड़े बेजुवान जानवर से भी कम!










चांद मामू,

उन्हें कोई नहीं पूछता,

न तीज में, न त्योहार में,

न शादी में, न सगाई में,

न उठावनी में, न संसकार में,

वो कभी चर्चाओं में भी नहीं होते,

न अपनों में, न परायों में,

उन्हें अपनी उम्र की गिनती नहीं आती,

और न ही उन्हें पता है रिश्तों का व्याकरण,

वो आज भी वहीं ठहर गए हैं,

अपनी मां की गोद से उतरकर,

अपनी मातृभाषा सीखने से पहले,

उनके लिए कोई उपहार नहीं लाता,

और न ही उनके लिए टॉफी ले जाता है,

उन्हें किसी का इंतजार भी नहीं है, 

उनमें न तो रोशनी है,

न शीतलता है,

न वो गाय हैं, न बकरी

न वो किसी आहार बन सकते हैं,

न ही उनकी खाल से किसी के जुते,

क्या कीमत है उनकी?

कनहोज में पड़े बेजुवान जानवर से भी कम!










शुक्रवार, 7 जुलाई 2023

संबंध

 अपनी ही रचनाओं का अर्थ वर्षों बाद समझ में आता है. ये कविता मैंने 1993 में लिखी थी...



संबंध


संबध कोई वृक्ष का पत्ता तो नहीं, 

जो बसंत में लगे,

और पतझड़ में बिखर जाय।

संबंध तो पंचवटी वृक्ष है,

जो एक साथ ही,

पल्लवित, पुष्पित और फलित होता है,

या परिन्दे द्वारा लाये गये बीज से,

या सानिध्य के अहसास से जुड़ गया हो,

पत्ते का वृक्ष से लगना,

और झड़ जाना,

उसकी गति है,

उसकी नियति है,

मगर संबंध कोई वृक्ष का पत्ता तो नहीं है,

जो बसंत में लगे, 

और पतझड़ में बिखर जाय।

माना निर्जीव-सा जुडे रहने के दुख से, 

कट जाने का दुख कम है,

मगर संबंध कोई,

वृक्ष का पत्ता तो नहीं,

जो बसंत में लगे, 

और पतझड़ में बिखर जाय।