शुक्रवार, 7 जुलाई 2023

संबंध

 अपनी ही रचनाओं का अर्थ वर्षों बाद समझ में आता है. ये कविता मैंने 1993 में लिखी थी...



संबंध


संबध कोई वृक्ष का पत्ता तो नहीं, 

जो बसंत में लगे,

और पतझड़ में बिखर जाय।

संबंध तो पंचवटी वृक्ष है,

जो एक साथ ही,

पल्लवित, पुष्पित और फलित होता है,

या परिन्दे द्वारा लाये गये बीज से,

या सानिध्य के अहसास से जुड़ गया हो,

पत्ते का वृक्ष से लगना,

और झड़ जाना,

उसकी गति है,

उसकी नियति है,

मगर संबंध कोई वृक्ष का पत्ता तो नहीं है,

जो बसंत में लगे, 

और पतझड़ में बिखर जाय।

माना निर्जीव-सा जुडे रहने के दुख से, 

कट जाने का दुख कम है,

मगर संबंध कोई,

वृक्ष का पत्ता तो नहीं,

जो बसंत में लगे, 

और पतझड़ में बिखर जाय।