गुरुवार, 21 मई 2009

पासवान का राजयोग खत्म

केन्द्र में यूपीए ने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है, लेकिन हर मत्रिमंडल में शामिल रहे एलजेपी प्रमुख रामविलास पासवान मंत्रिमंडल में नजर नहीं आयेंगे। 2009 के चुनाव में उनका पत्ता पूरी तरह साफ हो गया है। रामविलास पासवान न तो अपनी सीट बचा पाये और न ही उनकी पार्टी खात खोल पायी। हांलाकि अपनी हार के लिए पासवान यूपीए से दूरी बता रहे हैं, पर उनकी हार की वजह महज यही नहीं। केन्द्र में एक बार फिर कांग्रेस का कब्जा हो गया। मनमोहन सिंह ने सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया है और शुक्रवार को यूपीए की सरकार बन भी जाएगी, लेकिन मंत्रिमंडल में एक चेहरा जो पिछले कई सरकारों के मंत्रिमंडल में नजर आता रहा है, नजर नहीं आयेगा। एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान मंत्रिमंडल में नहीं होंगे, लेकिन सवाल ये है कि हर सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले पासवान आखिर इस बार सदन में क्यों नहीं पहुंच पाये। 1977 में रिकॉर्ड मतों से जीतने वाले रामविलास पासवान के साथ मतगणना से ठीक पहले अपशकुन हुआ। दिल्ली स्थित उनके घर में आग लग गई। चुनाव रिजल्ट आया तो पासवान हार गए। उनका पांसा गलत साबित हुआ। कांग्रेस का साथ छोड़ना उनकी भूल साबित हुई। हांलाकि वे हार की वजह अपनी ही भूल मानते हैं। कांग्रेस का साथ छूटना भारी पड़ा, लेकिन हार की वजह सिर्फ ये ही नहीं माना जा रहा है। लालू प्रसाद यादव से उनका गठजोड़ भी उन्हें मंहगा पड़ा। राघोपुर विधान सभा का इलाका राबड़ी देवी का क्षेत्र है। यादवों का वोट यहां से पासवान को नहीं मिला। विधानसभा चुनाव में सत्ता की चाबी खुद रखने की जिद्द की वजह से यादव नाराज थे। करीब चार लाख आबादी वाले यादव वोट अगर पासवान के पाले में गिरता तो स्थिति कुछ और होती। दूसरी बात ये कि पासवान अपनी जाति के एकलौते उम्मीदवार नहीं थे। उनकी जाति के चार उम्मीदवार खड़े होकर उनके वोट बैंक में सेंध लगाया। लालू से उनकी दोस्ती सवर्णों को रास नहीं आई। ऊंची जाति से मिलने वाले वोट उनकी झोली से छिटक गई। परिसीमन ने भी इनके वोट बैंक को तितिर-बितिर कर दिया। पातेपुर इलाका जो दलितों का गढ़ है इनकी परिधि से बाहर निकल गया। इसका भी खामियाजा उन्हें उठाना पड़ा। जेडीयू का गढ़ वैशाली का लालगंज इलाका हाजीपुर में शामिल हुआ तो लेकिन नीतीश के विकास की लहर ने यहां के दूसरे वोटरों को भी बहा ले गई।

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