गुरुवार, 21 मई 2009

किंग मेकर का सपना टूटा

राजनीति की चौसर पर कौन सा पांसा सही और कौन गलत होगा, यह चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलता है। इस आमचुनाव में आत्मविश्वास से लबरेज कई दिग्गज किंग मेकर का सपना देख रहे थे। उन्हें अपनी चाल पर पूरा भरोसा भी था, पर अब खुद पछता रहे हैं। बात चौथे मोर्चे के दिग्गजों की है। इनका दावा था कि इनके बिना सरकार बन ही नहीं सकती, पर यहां पांसा उल्टा पड़ा। ये किंग मेकर तो क्या ये जनादेश के कंगाल बन गए। इनके एक सहयोगी का खाता तक नहीं खुला और एक औंधे मुंह गिरे।
ऐसा मोर्चे की तीनों प्रमुख पार्टियों एसपी, आरजेडी और एलजेपी, इनके प्रमुख चुनाव परिणाम आने से पहले ही दावा कर रहे थे और चुनाव से पहले इनमें से दो पार्टियां अलग भी हो गईं, लेकिन यूपीए बहुमत के करीब आया तो नेताओं के बयान बदल गए। यहां भी इसका पांसा उल्टा पड़ा। कांग्रेस ने इन तीनों को अंगूठा देखा दिया। कांग्रेस ने साफ कर दिया कि बीस मई को होने वाली यूपीए की बैठक में एसपी और आरजेडी शामिल नहीं होंगे। इस बैठक में सिर्फ चुनाव पूर्व गठबंधन वाली पार्टी को ही न्योता दिया गया।
चुनाव से पहले एसपी मुखिया मुलायम सिंह यादव ने दावा किया था कि एसपी समर्थन के बिना केंद्र में सरकार नहीं बनेगी, लेकिन अब चुनाव परिणाम के बाद स्थिति एक दम बदल गई। हांलाकि एसपी नेता ने रविवार को प्रधानमंत्री से भी मुलाकात की और रविवार शाम को ही चौथे मोर्चे की बैठक भी बुलाई गई, लेकिन सोमवार को कांग्रेस का तेवर देख एसपी मुखिया मुलायम सिंह को अपनी कर्मभूमि मैनपुर बैरंग वापस लौटना पड़ा और सरकार में शामिल होने का सुर दूसरे राग में बदल गया। अब वे कुछ और आलाप रहे हैं।
आरजेडी प्रमुख कांग्रेस सरकार में रहे रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव की तो तबियत ही बदल गई। कांग्रेस के दो टूक जवाब से आहत श्री यादव तो आपा ही खो बैठें और जमकर कांग्रेस को भला बूरा कहा। यहां तक कि कैबिनेट में अपमानित किये जाने का आरोप भी लगाया। हांलाकि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और कांग्रेस राज्य इकाइयों ने पहले ही तय कर लिया था कि भविष्य में बिहार और यूपी में कांग्रेस अपने बलबूते पर चुनाव में उतरेगी। यूपी में कांग्रेस का फर्मूला कामयाब भी रहा है। जहां तक बिहार में एकल चुनाव में उतरने का फैसला कांग्रेस ने एलजेपी और आरजेडी की रणनीति के उजागर होने के बाद ही लिया था। बिहार में एलजेपी और आरजेडी ने सीटों का आपस में बंटवारा कर कांग्रेस के खाते में महज तीन सीटें डाली थी, जिसका परिणाम था कि बिहार के सभी 40 सीटों अकेल निर्णय लेने का फैसला किया।

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